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मारवाड़ के देसी चटखारे का देश दिवाना, घर-घर बन रही राबोड़ी-बड़िया

मारवाड़ के देसी चटखारे का देश दिवाना, घर-घर बन रही राबोड़ी-बड़िया


सर्दियों में हर घर में बनने लगते हैं राबोड़ी-बडिय़ा


कई महिलाओं के लिए वर्षभर आय का स्रोत


जोधपुर/धवा : मारवाड़ क्षेत्र में महिलाओं के हाथों से बनी देसी सब्जियां तो अपने जायके के लिए तो पूरे देश में मशहूर है ही, चटखारे के मामले में भी मारवाड़ का कोई सानी नहीं है। यहां घर-घर बन रहे राबोड़ी, बडिय़ा, खिचिया और पापड़ की बात ही कुछ और है। इसका स्वाद तो बेहतरीन है ही, इस काम के जरिए मारवाड़ की महिलाओं को अल्पकालिक रोजगार भी मिल पा रहा है। देश के कोने-कोने मेें व्यवसायरत व नौकरीसुदा मारवाडिय़ों के चलते मारवाड़ का स्वाद सीमाओं को लांघकर हर शख्स को दीवाना बना चुका है। इन दिनों मारवाड़ क्षेत्र के गांव-कस्बों में आबाद घरों से इन व्यंजनों की ही महक उठ रही है।

मारवाड़ की प्रसिद्ध सूखी सब्जियों में शुमार पापड़, राबोड़ी, बडिय़ा देश के विभिन्न राज्यों में भी चाव से खाई जाती है। बढ़ती मांग के चलते ग्रामीण क्षेत्र में महिलाएं इन दिनों अपने खेतों में नई फसलों की बुवाई व निदान से निवृत्त होने के बाद अपने फुर्सत के क्षणों में इन सब्जियों के निर्माण में जुटी हुई है। यह सब्जी खासकर मारवाड़ क्षेत्र में ही बनाई जाती है। देश के विभिन्‍न राज्यों में रहने वाले प्रवासी वापस जाते समय इन सूखी सब्जियों को अपने साथ ले जाते हैं। राजस्थान के आलावा बाहरी राज्यों में भी इन देसी सब्जियों की मांग होने से ये ग्रामीण महिलाओं के लिए रोजगार का साधन बनने लगा है।


ऐसे बनती है राबोड़ी, बडिय़ा


रेखा पटेल ने बताया कि छाछ व ज्वार,मक्की के आटे से राबोड़ी तैयार की जाती है।ज्वार, मक्की के आटे को छाछ में पकाकर इसका घोल तैयार किया जाता है। इसके बाद इस घोल को थालियों में लेकर प्लास्टिक या कपड़े पर डाला जाता है। हल्की धूप में सूखने के बाद यह सब्जी बनाने के लिए तैयार हो जाती है। इसे आसानी से पकाया जा सकता है।


स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक, साल भर नहीं होती खराब


घरों में देसी तरीके से तैयार यह सब्जियां साल भर खराब नहीं होती। इसके अलावा इनमें किसी प्रकार के केमिकल का उपयोग नहीं होता है, जिसके कारण यह सब्जियां स्वास्थ्य के लिहाज से फायदेमंद होती है। इसके अलावा इन सब्जियों को बनाने में ज्यादा लागत भी नहीं आती, जिसकी वजह से यह ग्रामीणों की जेब के लिए भी फायदेमंद साबित हो रही है।


ग्रामीण महिलाओं के लिए रोजगार का साधन


लगभग देश के हर कोने में इन देसी सब्जियों की भारी खपत है। सर्दियों में ग्रामीण महिलाओं द्वारा तैयार की जाने वाली इन सब्जियों को बनाने में बहुत कम रुपयों की आवश्यकता होती है। महिलाएं साल भर के हिसाब से इन सब्जियों को एक साथ बना देती है। साल भर यह सब्जियां ग्रामीण महिलाओं के लिए आय का स्त्रोत बनी रहती है।


ये सब्जी भी मारवाड़ से जोड़े रखती है

मारवाड़ी ग्रामीण जब दिपावली पर्व मनाने के लिए देशावर से घर आने के बाद जब  वापस जाते समय यह सुखी सब्जियां अपने साथ सालभर के लिए राबोड़ी व बडिय़ा लेकर जाते है। यह सब्जियां खाने में स्वादिष्ट होने के साथ साथ हमें अपनी जन्मभूमि की याद दिलाती है। इन सब्जियों से ग्रामीण महिलाओं को रोजगार भी मिल सकता है। मारवाड़ में कोई ऐसी पहल करें तो प्रवासी लोग अपना सहयोग देने के लिए तैयार है।